लेखनी कहानी -09-Mar-2023- पौराणिक कहानिया
यह युक्ति राजा साहब
को विचारणीय जान
पड़ी। बोले-अच्छा,
सोचूँगा। इतना कहकर
चले गए।
दूसरे दिन सुबह
जॉन सेवक राजा
साहब से मिलने
आए। उन्होंने भी
यही सलाह दी
कि इस मुआमले
में जरा भी
न दबना चाहिए।
लड़ूँगा तो मैं,
आप केवल मेरी
पीठ ठोकते जाइएगा।
राजा साहब को
कुछ ढाढ़स हुआ,
एक से दो
हुए। संधया समय
वह कुँवर साहब
से सलाह लेने
गए। उनकी भी
यही राय हुई।
डॉक्टर गांगुली तार द्वारा
बुलाए गए। उन्होंने
यहाँ तक जोर
दिया कि 'आप
चुप भी हो
जाएँगे, तो मैं
व्यवस्थापक सभा में
इस विषय को
अवश्य उपस्थित करूँगा।
सरकार हमारे वाणिज्य-व्यवसाय की ओर
इतनी उदासीन नहीं
रह सकती। यह
न्याय-अन्याय या
मानापमान का प्रश्न
नहीं है, केवल
व्यावसायिक प्रतिस्पधर्ाा का प्रश्न
है।'
राजा साहब इंदु
से बोले-लो
भाई, तुम्हारी ही
सलाह पक्की रही।
जान पर खेल
रहा हूँ।
इंदु ने उन्हें
श्रध्दा की दृष्टि
से देखकर कहा-ईश्वर ने चाहा
तो आपकी विजय
ही होगी।